
लुकवासा में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी, तेज आवाज में बज रहे डीजे से लोग परेशान
तेज आवाज से हार्ट अटैक का खतरा सबसे ज्यादा
लुकवासा, मध्य प्रदेश—लुकवासा क्षेत्र में इन दिनों लगातार डीजे की तेज आवाज ने स्थानीय निवासियों की शांति को भंग कर दिया है। प्रशासन की लापरवाही और सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट दिशानिर्देशों की अनदेखी ने लोगों को चिंतित कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण के लिए स्पष्ट रूप से कहा है कि रात्रि 10 बजे के बाद किसी भी तरह के ध्वनि उत्पादक उपकरणों का उपयोग प्रतिबंधित है। साथ ही, ध्वनि की सीमा भी तय की गई है, जिसे डीजे ऑपरेटरों को सख्ती से पालन करना चाहिए।
स्वास्थ्य पर बुरा असर
लोगों का कहना है कि डीजे की तीव्र आवाज से वे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रभावित हो रहे हैं। विशेष रूप से बुजुर्ग, बच्चे और अस्पतालों के पास रहने वाले लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। डॉक्टरों का कहना है कि लंबे समय तक तेज ध्वनि का संपर्क कानों पर बुरा असर डाल सकता है, जिससे सुनने की क्षमता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा, नींद की कमी और मानसिक तनाव भी लगातार बढ़ रहा है।
प्रशासन की अनदेखी
स्थानीय निवासियों ने कई बार प्रशासन से शिकायत की है, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। लोगों का कहना है कि प्रशासन की यह लापरवाही न केवल जनता की समस्याओं को बढ़ा रही है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का भी उल्लंघन कर रही है। अदालत ने यह स्पष्ट रूप से कहा है कि ध्वनि प्रदूषण के कारण लोगों के स्वास्थ्य और शांति को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए, और इसके लिए कड़े नियम लागू किए गए ह
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में रात्रि 10 बजे के बाद डीजे बजाने पर रोक लगाई है और ध्वनि सीमा को नियंत्रित करने का भी आदेश दिया है। बावजूद इसके, लुकवासा में प्रशासन की उदासीनता से लोग परेशान हैं और उन्हें कोई राहत मिलती नहीं दिख रही है। यह सीधा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना है, जो न केवल नागरिकों के अधिकारों का हनन है, बल्कि ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण के कानूनों का भी उल्लंघन है।
क्या होगा समाधान?
अब सवाल यह उठता है कि प्रशासन कब तक इस मुद्दे की अनदेखी करता रहेगा? क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन सुनिश्चित किया जाएगा या जनता इसी तरह परेशान होती रहेगी? लोगों ने जल्द से जल्द उचित कदम उठाने की मांग की है और कहा है कि यदि प्रशासन ने समय रहते कोई कार्रवाई नहीं की, तो वे न्यायालय की शरण में जाने पर मजबूर होंगे।
ध्यान देना जरूरी है कि प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन कराए और जनता को ध्वनि प्रदूषण से राहत दिलाए।




