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नगर पालिका बनी, लेकिन विकास कहां?” — रन्नौद में बिजली समेत मूलभूत सुविधाओं का टोटा

क्या राजनीति की प्रयोगशाला बनता जा रहा है रन्नौद नगर पालिका

गुरप्रताप सिंह गिल की कलम से
रन्नौद — एक समय टप्पा कहलाने वाला रन्नौद जब नगर पालिका के रूप में घोषित हुआ था, तब क्षेत्रवासियों ने खुशी से जश्न मनाया था। लेकिन अब वही रन्नौद, विकास के नाम पर ठगा सा महसूस कर रहा है।

नगर पालिका मुख्यालय रन्नौद में ही जब मूलभूत सुविधाएं नदारद हों, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसके अंतर्गत आने वाले अन्य हिस्सों की हालत कितनी बदतर होगी। रन्नौद की सड़कों से लेकर बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सुविधाएं पूरी तरह चरमरा चुकी हैं। यहां के वासी बिजली जैसी बुनियादी आवश्यकता के लिए तरस रहे हैं। शाम होते ही रन्नौद घुप्प अंधेरे में डूब जाता है — ऐसा लगता है मानो विकास की रोशनी से इस क्षेत्र की किस्मत ने मुंह मोड़ लिया हो।

स्थानीय लोगों का दर्द इन शब्दों में छलकता है — “टप्पा ही भला था, कम से कम उम्मीदें तो नहीं थीं।” यह वाक्य आज रन्नौद के हर नागरिक की भावना को बयां करता है। नगर पालिका बनने की घोषणा के बाद विकास की जो उम्मीद जगी थी, वह अब गहरी निराशा में बदल चुकी है।

शासन की योजनाएं यहां कागज़ों तक सीमित हैं। गरीब तबका पेंशन, उज्ज्वला योजना, पीएम आवास जैसी सरकारी सुविधाओं से वंचित है। जल आपूर्ति की स्थिति यह है कि कई मोहल्लों में सप्ताहों तक पानी नहीं आता, और बिजली की तो बात ही क्या — पूरे दिन में महज कुछ घंटे ही आपूर्ति होती है, वह भी अनिश्चित।

प्रशासनिक उदासीनता साफ तौर पर दिख रही है। एक नवीनतम नगर पालिका बनने के बावजूद यदि बुनियादी समस्याएं जस की तस बनी रहें, तो यह सवाल खड़े करता है — क्या नई नगर पालिका सिर्फ नाम का तमगा है?

अब देखना होगा कि रन्नौद नगर पालिका के जिम्मेदार अधिकारी इस अंधेरे से भरे भविष्य को उजाले में लाने के लिए कब और क्या ठोस कदम उठाते हैं।

Mukesh Singh

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