Breaking News

लिस्ट” का खेल: मूल भाजपाइयों की दुर्दशा और नए भाजपाइयों की मौज

एक रहेंगे तो नेक रहेंगे बाला नारा तोड़ रही है लिस्ट

कोलारस

इन दिनों भाजपा के महा सदस्यता अभियान की गूंज के साथ-साथ एक अजीबोगरीब चर्चा ने जोर पकड़ लिया है। जनता की जुबान पर यह सवाल गरम है कि क्या वाकई पुलिस अधीक्षक, कलेक्टर और भाजपा विधायकों के दफ्तर में कोई “लिस्ट” है, जिसमें यह तय हो रहा है कि किस भाजपा नेता को लिफ्ट देनी है और किसे दरकिनार करना है? और अगर है, तो उसमें पुराने भाजपाइयों के नाम आखिर क्यों गायब हैं

“लिस्ट” में क्या लिस्टेड है?

अब आप सोच रहे होंगे, आखिर ये “लिस्ट” क्या है? जनाब, ये वही “लिस्ट” है जिसमें हमारे *मूल* भाजपाई कहीं दिखाई नहीं दे रहे और *नए* भाजपाई शान से मौज काट रहे हैं। हालात ऐसे हो गए हैं कि पुराने नेता, जो कभी भाजपा की नींव में ईंटें जोड़ते थे, अब ठगे से महसूस कर रहे हैं।

मामला संजू गोयल से शुरू होता है, जो भाजपा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और पुराने नेता हैं। उनके घर पर बंदूकधारी बदमाशों ने चोरी की और सीसीटीवी में सारी घटना कैद हो गई। लेकिन पुलिस ने एक चाय भी न मंगाई। नाराज होकर संजू गोयल ने खुद इनाम घोषित कर दिया—11,000 रुपये का! अब आप ही सोचिए, जब नेता को खुद चोर पकड़वाने का एलान करना पड़े, तो पुलिस क्या कर रही थी? शायद वो अपनी “लिस्ट” में व्यस्त थी, यह तय करने में कि किन नेताओं की शिकायतें पहले सुनी जाएं।

दूसरी तरफ जगदीश भट्ट, जो स्मैकचियों के हमले से बाल-बाल बचे। उन्होंने पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखा, लेकिन पुलिस की प्राथमिकताएं शायद “लिस्ट” में लिखी थीं, इसलिए यह मामला भी धूल खा गया।

व्यंग्य की आंच में राजनीति की पकौड़ियाँ

अब, आइए बात करें इस पूरे प्रकरण से पार्टी को होने वाले राजनैतिक नफा-नुकसान की। भाजपा का महा सदस्यता अभियान अपनी चरम पर है, और नए सदस्य दिन-रात जोड़े जा रहे हैं। लेकिन सवाल उठता है कि जिन पुराने कार्यकर्ताओं ने पार्टी को दशकों तक सींचा, उन्हें आखिर क्यों नज़रअंदाज़ किया जा रहा है?

शायद इसका कारण वही रहस्यमयी “लिस्ट” है, जिसमें पुराने भाजपाई तो गायब हैं और नए भाजपाई ठाठ से मौज कर रहे हैं। पुराने नेताओं का दर्द वही है जो वो स्कूल के उन छात्रों का होता है, जिन्हें “टीम में आखिरी चुना जाता है” या फिर कभी चुना ही नहीं जाता!

राजनीति की फिसलन और “लिस्ट” का खेल

अब अगर ऐसा ही चलता रहा, तो भाजपा के लिए यह “लिस्ट” ही उसका सबसे बड़ा राजनीतिक नुकसान बन सकती है। पार्टी के पुराने और वफादार नेता हाशिये पर चले जाएंगे और नए नेताओं का बोलबाला होगा। लेकिन जैसा कि भारतीय राजनीति में होता है, जब तक पब्लिक, सड़कों पर “लिस्ट” की मांग करने न उतर आए, तब तक इस खेल में कुछ खास बदलाव नहीं होगा।

आखिर में, जनता यह भी देख रही है कि अगर मूल भाजपाई ही साइडलाइन होते रहेंगे, तो क्या पार्टी की साख बनी रहेगी या “लिस्ट” की राजनीति उसे नुकसान पहुंचाएगी। जनता तो बस इतना जानना चाहती है: “अरे भाई, वो लिस्ट कहां है? हमें भी दिखाओ!”

Mukesh Singh

Related Articles

Back to top button