
क्या सपनो का शहर दिखा कर ठगा गया है कोलारस को
एक ऐसा सपना बेचा गया जो कभी पूरा न हो सका
कोलारस नगर पालिका का इतिहास बड़ा ही विचित्र और शिक्षाप्रद है। कोलारस, एक ऐसा नगर जो वर्षों से विकास की उम्मीद लगाए बैठा था, वहां एक सपनों का सौदागर आकर सत्ता में बैठ गया। इस सपनों के सौदागर ने बीस वर्षों तक नगर पालिका पर अपनी पकड़ बनाए रखी, परंतु जनता की समस्याओं का समाधान करने में उसे कोई विशेष रुचि नहीं थी। सपनों के सौदागर का मानना था कि अगर एक बार जनता की समस्याएं सुलझा दी गईं, तो वे फिर दूसरी समस्याएं उठाने लगेंगी, और इसीलिए उसने जनता को बस झूठे सपनों में उलझाए रखा।कोलारस के लोग धीरे-धीरे समझने लगे कि उनकी समस्याओं का समाधान शायद ही कभी होगा। वर्षों बीत गए, लेकिन समस्याएं जस की तस बनी रहीं। हर बार जब जनता अपनी उम्मीदें लेकर दरबार में जाती, तो सपनों का सौदागर उन्हें नए-नए सपने बेचता और उनके दिल में झूठी उम्मीदें भरता। धीरे-धीरे जनता भी समझ गई कि समस्याएं सुलझने वाली नहीं हैं, लेकिन सपनों के जाल में फंसे रहने में ही उसकी भलाई है।एक दिन सपनों के सौदागर के एक करीबी ने पूछ ही लिया, “सर, आप इतने सालों से सिर्फ सपने बेचते आ रहे हैं, लेकिन कोई विद्रोह क्यों नहीं होता?”सपनों का सौदागर मुस्कुराते हुए बोला, “हर समाज में चार तरह के लोग होते हैं। पहले, जो सोचते हैं—उन्हें उधार दो। दूसरे, जो विरोध करते हैं—उन्हें सपनों का नशा दे दो। तीसरे, जो ईमानदार होते हैं—उन्हें सम्मान दो। और चौथे, हुड़दंगी होते हैं—उन्हें हंटर दिखाओ। इस तरह, सब अपने आप संभल जाते हैं।”इस नीति के सहारे सपनों का सौदागर कोलारस में बिना किसी विद्रोह के अपने दो दशकों का शासन पूरा कर गया। जनता को सपने मिलते रहे, और समस्याएं जस की तस बनी रहीं।



