
शिक्षक: स्कूल से गायब, राजनीति में हाज़िर
नेताओं के इर्दगिर्द फोटो खिंचाने वाले शिक्षकों का जमाना जोरों पर
शिवपुरी जिले के सरकारी स्कूलों में इन दिनों शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट का असली कारण सामने आ गया है—राजनीति का भूत! जी हां, जिले में तैनात 50% शिक्षक स्कूल से ज्यादा राजनीति की पाठशाला में समय बिता रहे हैं। स्कूल का घंटा बजते ही उनकी गाड़ी सीधे “सत्ता मार्ग” की ओर दौड़ती है, जबकि बच्चे क्लासरूम में उनकी मूरत के दर्शन कर रहे होते हैं।
खबर तो ये है कि ये शिक्षक 80 हजार की मोटी तनख्वाह लेते हुए भी स्कूलों में पैर रखना गवारा नहीं समझते। और विडंबना देखिए, अपने बच्चों को 15 हजार की नौकरी पर तैनात निजी स्कूलों के शिक्षकों से पढ़वा रहे हैं। वाह! ये है असली “मुफ्त की शिक्षा”— जहां खुद शिक्षा से दूर भागने वाले शिक्षक, दूसरों से उम्मीद करते हैं कि वो उनके बच्चों को नैतिक शिक्षा दें।
सरकारी स्कूलों में बच्चे बैठकर सोच रहे हैं, “हमारे शिक्षक आखिर कहां हैं?” उधर शिक्षक सोच रहे हैं, “राजनीति में हमारी अगली पोस्टिंग कहां होगी?” आखिरकार, राजनीति का इतना बड़ा भूत सिर पर चढ़ा हो तो स्कूल की खिड़की से झांकने का समय कहां मिलेगा?
शिवपुरी के कुछ स्कूलों में तो नया नियम लागू हो गया है— “क्लासरूम के बजाय कमेटी रूम में आओ, क्योंकि अब पढ़ाई नहीं, ‘सिफारिश’ काम आएगी।”
नोट: बच्चों के अभिभावकों को सलाह दी जाती है कि वे बच्चों के स्कूल बैग में किताबों के साथ एक ‘पॉलिटिकल कनेक्शन‘ भी जरूर रखें, क्योंकि जब शिक्षक पढ़ाने नहीं आएंगे, तब ये कनेक्शन ही उनका भविष्य संवार सकता है।



